मूल आधार श्रद्धा - जिन श्रद्धाओं को लेकर हम प्रार्थना करते हैं, वे जीवन को व्यापक बनाती हैं ! एक डूबता प्राणी जो भी चीज हाथ लगे, उसे पकड़ लेता हैं ! वह सोचता ही नहीं कि यह चीज कितनी मजबूत हैं ! में जब घौर विपदा में डूब रहा था, उस विपदा से मैनें कहा कि * मन भगवती को सन्देश दे दो-सुरेश मर रहा हैं और आत्मा अमर हैं ! *फिर बहते बहते दूसरे किनारे चला गया, जहां पर शक्ति थी ! मैनें प्रभु कृपा से उस शक्ति को हाथ से पकड़ां और सहज भाव से पांव रुक गया ! सार यह हैं कि डूबता हुआ व्यक्ति सोचता नहीं हैं कि उसे जो आधार मिल रहा हैं, वह कितना मजबूत हैं ! वह बिलकुल श्रद्धा से उसे पकड़ लेता हैं ! अगर वह श्रद्धा गलत साबित हुई तो वह डूबता हैं ! सही साबित हुई तो बच जाता हैं ! इस तरह डूबते हुए प्राणी का तैरने का जो प्रयत्न हैं, उसमें प्रार्थना आती हैं ! किसी को आधार की जरूरत मालूम नहीं होती ! लेकिन मैनें प्रभु कृपा को अपना मुख्य आधार माना हैं !
भजन मन को पवित्र करता है और मानव को परमार्थ की और विवेक-शील बनाता है ।
अत: भजन को तन, मन और वचन से जप लो ।
गणेश-गण (भूतगण, जीब-गण) के स्वामी अर्थात समस्त प्राणियों तथा पदार्थो के परमाधिपति !
उमा - उ शिवं माति-मिमित्ते* जो भगवान शंकर में अभिन्न रूप से (अर्धनारीश्वर रूप में भी) स्थित होकर उन्हें माप रही हैं; जो शिव में व्याप्त हैं; वे पराशक्ति उमा हैं !
दुर्गा- दुःखेन गम्यते -जिनकी प्राप्ति बड़े कष्ट से होती हैं ! * दुर्गति नश्यति इति दुर्गा* जो भक्त की दुर्गति का निवारण करने वाली हैं, वे पराशक्ति *दुर्गा* कहि जाती हैं !
महादेव - सबसे श्रेष्ठ देवता ! जो समस्त भावों को छोड़कर अपने ही ज्ञान एवं ऐश्वर्य से महिमान्वित हैं ! * देव प्रकाशक* अतः *महादेव*-परं प्रकाशक !
रूद्र-रुलाने वाले ! जो प्रलय-काल में प्रजा का संहार करके सबको रुलाते हैं, वे *रूद्र* ! अथवा *रुद ददाति* वाक् शक्ति के प्रदाता शिवपुराण के अनुसार *रूद्र* का अर्थ हैं -दुःखो तथा दुःखो के कारण दूर कर देने वाले ! रुद्रदुःखम दुःख-हेतुं वा तद द्रावयति यः प्रभु ! रूद्र इस्युच्यते तस्माच्छिवः परमकारणम् !!
शिव - निस्त्रैगुण्य - त्रिगुण-रहित शुद्ध सच्चिदानंद तत्व *शिव* कहलाता हैं ! अशुभ-निबारक, कल्याणस्वरूप होने से भी वे *शिव* कहे जाते हैं !
शंकर -*श* का अर्थ हैं- कल्याण ! जीव के परम कल्याणकर्ता होने से भगवान शिव को *शंकर* खा जाता हैं !
शम्भु-*शं* का अर्थ हैं मंगल ! वह जिसके द्वारा प्राप्त होता हैं, वे प्रभु *शम्भु* कहें जाते हैं !
लक्ष्मी - जो महाशक्ति सबकी लक्ष्यरूपा हैं, सभी जिनकी कृपा चाहते हैं, वे लक्ष्यभूता पराशक्ति *लक्ष्मी* कहलाती हैं !
श्री - शोभा,संपत्ति, ऐश्र्वर्य स्वरूपा होने से पराशक्ति कही जाती हैं !
लक्ष्मी - जो महाशक्ति सबकी लक्ष्यरूपा हैं, सभी जिनकी कृपा चाहते हैं, वे लक्ष्यभूता पराशक्ति *लक्ष्मी* कहलाती हैं !
श्री - शोभा,संपत्ति, ऐश्र्वर्य स्वरूपा होने से पराशक्ति कही जाती हैं !
He prayeth well who loveth well, Both man and bird and beast.He prayeth best who loveth best, All things both great and small;For the dear God who loveth us, He made and loveth all.O Lord of courage grave,O Master of this night of spring ! Make firm in me a heart too brave, To ask Thee anything.Who rises from prayer a better man, his prayer is answered. !
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