Wednesday, August 20, 2014

काम की 10 बातें, जो रखें जीवन सुरक्षित, जानिए

राहुकाल : जब कोई कार्य पूर्ण मेहनत किए जाने के बाद भी असफल हो जाए या उस कार्य के विपरीत परिणाम जाए, तो समझ लीजिए आपका कार्य शुभ मुहूर्त में नहीं हुआ बल्कि राहुकाल में हुआ है। राहुकाल में शुभ कार्य करना वर्जित है।

क्या होता राहुकाल? : राहुकाल कभी सुबह, कभी दोपहर तो कभी शाम के समय आता है, लेकिन सूर्यास्त से पूर्व ही पड़ता है। राहुकाल की अवधि दिन (सूर्योदय से सूर्यास्त तक के समय) के 8वें भाग के बराबर होती है यानी राहुकाल का समय डेढ़ घंटा होता है। राहुकाल को छायाग्रह का काल कहते हैं। उक्त डेढ़ घंटा कोई कार्य न करें या किसी यात्रा को टाल दें।

कब होता है राहुकाल-
* रविवार को शाम 4.30 से 6.00 बजे तक राहुकाल होता है।
* सोमवार को दिन का दूसरा भाग यानी सुबह 7.30 से 9 बजे तक राहुकाल होता है।
* मंगलवार को दोपहर 3.00 से 4.30 बजे तक राहुकाल होता है।
* बुधवार को दोपहर 12.00 से 1.30 बजे तक राहुकाल माना गया है।
* गुरुवार को दोपहर 1.30 से 3.00 बजे तक का समय यानी दिन का छठा भाग राहुकाल होता है।
* शुक्रवार को दिन का चौथा भाग राहुकाल होता है यानी सुबह 10.30 बजे से 12 बजे तक का समय राहुकाल है।
* शनिवार को सुबह 9 बजे से 10.30 बजे तक के समय को राहुकाल माना गया है।

Wednesday, August 6, 2014

भगवान -*भग* शब्द का अर्थ करते हुए कहा गया हैं कि सम्पूर्ण ऐश्वर्य,

भगवान -*भग* शब्द का अर्थ करते हुए कहा गया हैं कि सम्पूर्ण ऐश्वर्य, सम्पूर्ण धर्म, सम्पूर्ण यश, सम्पूर्ण श्री, सम्पूर्ण ज्ञान तथा सम्पूर्ण वैराग्य के एकीभाव को *भग* कहते हैं ! ये छः पूर्णरूप से जिसमें नित्य निवास करें, वे भगवान हैं ! यह परमात्मतत्व नित्य, शाश्वत सगुण स्वरूप का वाचक हैं !

परमात्मा - यहां आत्मा शब्द का अर्थ जीव हैं !

परमात्मा - यहां आत्मा शब्द का अर्थ जीव हैं ! उस आत्मा (जीव) से जो श्रेष्ठ  हैं, वह परमात्मा हैं ! गीता में *अक्षरादपि चोत्तमः* कहकर पुरुषोत्तम परमात्मरूप का वर्णन हैं ! सृष्टि का जो मूल कारण हैं; जिसके संसर्ग के बिना प्रकृति में सृजन-क्रिया सम्भव नहीं, उस सविशेष सर्वव्यापक चित्त -तत्त्व को *परमात्मा* कहते हैं !

Monday, August 4, 2014

भजन मन को पवित्र करता है और मानव को परमार्थ की और विवेक-शील बनाता है ।

श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारे हे, नाथ नारायण बासुदेव.. 
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अत: भजन को तन, मन और वचन से जप लो । 
अत: भजन को तन, मन और वचन से जप लो । 
अत: भजन को तन, मन और वचन से जप लो । 
सुप्रभातम..

Prabhu Kripa - मूल आधार श्रद्धा ...

मूल आधार श्रद्धा - जिन श्रद्धाओं को लेकर हम प्रार्थना करते हैं, वे जीवन को व्यापक बनाती हैं ! एक डूबता प्राणी जो भी चीज हाथ लगे, उसे पकड़ लेता हैं ! वह सोचता ही नहीं कि यह चीज कितनी मजबूत हैं ! में जब घौर विपदा में डूब रहा था, उस विपदा से मैनें कहा कि * मन भगवती को सन्देश दे दो-सुरेश मर रहा हैं और आत्मा अमर हैं ! *फिर बहते बहते दूसरे किनारे चला गया, जहां पर शक्ति थी ! मैनें प्रभु कृपा से उस शक्ति को हाथ से पकड़ां और सहज भाव से पांव रुक गया ! सार यह हैं कि डूबता हुआ व्यक्ति सोचता नहीं हैं कि उसे जो आधार मिल रहा हैं, वह कितना मजबूत हैं ! वह बिलकुल श्रद्धा से उसे पकड़ लेता हैं ! अगर वह श्रद्धा गलत साबित हुई तो वह डूबता हैं ! सही साबित हुई तो बच जाता हैं ! इस तरह डूबते हुए प्राणी का तैरने का जो प्रयत्न हैं, उसमें प्रार्थना आती हैं ! किसी को आधार की जरूरत मालूम नहीं होती ! लेकिन मैनें प्रभु कृपा को अपना मुख्य आधार माना हैं !

भजन मन को पवित्र करता है और मानव को  परमार्थ की  और विवेक-शील  बनाता है । 
अत: भजन को  तन, मन और वचन से जप लो । 

गणेश-गण (भूतगण, जीब-गण) के स्वामी अर्थात समस्त प्राणियों तथा पदार्थो के परमाधिपति !

उमा - उ शिवं माति-मिमित्ते* जो भगवान शंकर में अभिन्न रूप से (अर्धनारीश्वर रूप में भी) स्थित होकर उन्हें माप रही हैं; जो शिव में व्याप्त हैं; वे पराशक्ति उमा हैं ! 

दुर्गा- दुःखेन गम्यते -जिनकी प्राप्ति बड़े कष्ट से होती हैं ! * दुर्गति नश्यति इति दुर्गा* जो भक्त की दुर्गति का निवारण करने वाली हैं, वे पराशक्ति *दुर्गा* कहि जाती हैं !

महादेव - सबसे श्रेष्ठ देवता ! जो समस्त भावों को छोड़कर अपने ही ज्ञान एवं ऐश्वर्य से महिमान्वित हैं ! * देव प्रकाशक* अतः *महादेव*-परं प्रकाशक !

रूद्र-रुलाने वाले ! जो प्रलय-काल में प्रजा का संहार करके सबको रुलाते हैं, वे *रूद्र* ! अथवा *रुद ददाति* वाक् शक्ति के प्रदाता शिवपुराण के अनुसार *रूद्र* का अर्थ हैं -दुःखो तथा दुःखो के कारण दूर कर देने वाले ! रुद्रदुःखम दुःख-हेतुं वा तद द्रावयति यः प्रभु ! रूद्र इस्युच्यते तस्माच्छिवः परमकारणम् !!

शिव - निस्त्रैगुण्य - त्रिगुण-रहित शुद्ध सच्चिदानंद तत्व *शिव* कहलाता हैं ! अशुभ-निबारक, कल्याणस्वरूप होने से भी वे *शिव* कहे जाते हैं !

शंकर -*श* का अर्थ हैं- कल्याण ! जीव के परम कल्याणकर्ता होने से भगवान शिव को *शंकर* खा जाता हैं !

शम्भु-*शं* का अर्थ हैं मंगल ! वह जिसके द्वारा प्राप्त होता हैं, वे प्रभु *शम्भु* कहें जाते हैं !

लक्ष्मी - जो महाशक्ति सबकी लक्ष्यरूपा हैं, सभी जिनकी कृपा चाहते हैं, वे लक्ष्यभूता पराशक्ति *लक्ष्मी* कहलाती हैं !

श्री - शोभा,संपत्ति, ऐश्र्वर्य स्वरूपा होने से पराशक्ति कही जाती हैं !

He prayeth well who loveth well, Both man and bird and beast.He prayeth best who loveth best, All things both great and small;For the dear God who loveth us, He made and loveth all.O Lord of courage grave,O Master of this night of spring ! Make firm in me a heart too brave, To ask Thee anything.Who rises from prayer a better man, his prayer is answered. !