Monday, December 30, 2013

हार्ट अटैक: ना घबराये ......!!! सहज सुलभ उपाय ....पीपल का पत्ता....

हार्ट अटैक: ना घबराये ......!!! सहज सुलभ उपाय .... 99 प्रतिशत ब्लॉकेज को भी रिमूव कर देता है
पीपल का पत्ता.... पीपल के 15 पत्ते लें जो कोमल गुलाबी कोंपलें न हों, बल्कि पत्ते हरे, कोमल व भली प्रकार विकसित हों। प्रत्येक का ऊपर व नीचे का कुछ भाग कैंची से काटकर अलग कर दें। पत्ते का बीच का भाग पानी से साफ कर लें। इन्हें एक गिलास पानी में धीमी आँच पर पकने दें। जब पानी उबलकर एक तिहाई रह जाए तब ठंडा होने पर साफ कपड़े से छान लें और उसे ठंडे स्थान पर रख दें, दवा तैयार। इस काढ़े की तीन खुराकें बनाकर प्रत्येक तीन घंटे बाद प्रातः लें। हार्ट अटैक के बाद कुछ समय हो जाने के पश्चात लगातार पंद्रह दिन तक इसे लेने से हृदय पुनः स्वस्थ हो जाता है और फिर दिल का दौरा पड़ने की संभावना नहीं रहती। दिल के रोगी इस नुस्खे का एक बार प्रयोग अवश्य करें। * पीपल के पत्ते में दिल को बल और शांति देने की अद्भुत क्षमता है। * इस पीपल के काढ़े की तीन खुराकें सवेरे 8 बजे, 11 बजे व 2 बजे ली जा सकती हैं। * खुराक लेने से पहले पेट एक दम खाली नहीं होना चाहिए, बल्कि सुपाच्य व हल्का नाश्ता करने के बाद ही लें। * प्रयोगकाल में तली चीजें, चावल आदि न लें। मांस, मछली, अंडे, शराब, धूम्रपान का प्रयोग बंद कर दें। नमक, चिकनाई का प्रयोग बंद कर दें। * अनार, पपीता, आंवला, बथुआ, लहसुन, मैथी दाना, सेब का मुरब्बा, मौसंबी, रात में भिगोए काले चने, किशमिश, गुग्गुल, दही, छाछ आदि लें । ...... तो अब समझ आया, भगवान ने पीपल के पत्तों को हार्टशेप क्यों बनाया.. शेयर करना ना भूले..... Via Carttons Againest Curroptions

Saturday, December 7, 2013

दुर्गा स्वरुप कन्या -Durga as a Virgo

१-दुर्गा स्वरुप कन्या :-

२-दो वर्ष की कन्या - कुमारी
३-तीन  वर्ष की - तिरमूर्ति
४-चार वर्ष की - कल्याणी
५-पञ्च वर्ष की -रोहणी
६-छह वर्ष की -कलिका
७-सात वर्ष की - शांभवी
८-नो वर्ष की दुर्गा
९-दस वर्ष की -सुभद्रा और इनका इसी प्रकार से पूजा विधान हें !

*चंडी के दो महामंत्र -
१-ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाये विच्चे !
२-ॐ महिषमर्दिनी नमः !!

1 - Durga as a Virgo: -
2 - two-year-old girl - Miss
3 - three years - Tirmurthy
4 - four years - Kalyani
5 - five years - Rohni
6 - six years - bud
7 - seven years - Shanbvi
8 - Last Year's Durga
9 - ten years - Subhadra and they worshiped the same legislation Hey!

* Chandi two mantras -
1 - ey Hrin Clin Vichche Chamundaye!
2 - Mahismrdini Namah!

दुर्गा नाम -Durga name

दुर्गा नाम -

द,उ,र,ग और अ से मिलकर बना हें ! *द* दैत्यो का नाश का प्रतीक हें !

*उ* - विघ्न नाशक 

*र* - रोगनाशक 

*ग* - पापनाशक 

*आ* - भय तथा शत्रु विनाशक 

*यह अर्थ ही दुर्गा नाम का यथार्थ बोधक हें !

Durga name -

The, u, r, c and consists of a Hey! * The * symbol of the destruction of Datyo Hey!

* U * - Disturbing the destroyer

* Su * - blue

* C * - piacular

* Might * - fear the enemy destroyer

* The real meaning of the name Durga cognitive Hey!



Maha Mrityunjay equipment worship Method -

महा मृत्युंजय यंत्र  पूजा विधि -

१-शुभ दिन -सोमवार या शिवरात्रि

२-चंदन -सफेद या पिला 

३-मिश्रित या गंगाजल (स्नान के लिए) 

४-वस्त्र - सफेद पर धारण करें आसन पूजा स्थान पर !

५-पुष्प - बेलपत्र,मुदार,धतूरे 

६-धूप दीप - सुगन्धित 

७-आसन वस्त्र - सफेद 

८- जप के लिए -रुद्राक्ष माला 

*दशाक्षर मन्त्र ॐ नमो भगवते रुद्राय*
*रूप -यंत्र के सम्मुख -
१- ॐ अघोराय नमः 
२-ॐ पशुपतये नमः 
३-ॐ नमः शिवाय शिवाय नमः 
४-ॐ विरूपाय  नमः 
५-ॐ विश्वरूपाय नमः 
६-ॐ भैरवाय नमः 
७-ॐ त्र्यंबकाय नमः 
८-ॐ शूलपाणये नमः 
९-ॐ कपर्दिने नमः 
१०-ॐ ईशाय नमः 
११-ॐ महेशाय नमः 

Maha Mrityunjay equipment worship Method -

1 - Good day - Monday or Shivaratri

2 - sandalwood - white or yellow

3 - Mixed or holy water ( for bathing )

4 - Clothing - Wear white pedestal worship place !

5 - Flower - Belptr , Mudar , hare

6 - sun lamp - aromatic

7 - Asan Textile - White

8 - chanting - Rudraksh beads

* Decasyllable mantra Namo Bgwate Rudraay *

* - The front of the machine -
1 - Agoray Namah
2 - Pshuptye Namah
3 - Namaha Shivaya Namah Shivaya
4 - Virupi Namah
5 - Vishwarupi Namah
6 - Barway Namah
7 - Trynbkay Namah
8 - Sulpanye Namah
9 - Kprdine Namah
10 - Ishay Namah
11 - Maheshay Namah

तंत्र की साधना का रहस्य -The mystery of the mechanisms of Silence

तांत्रिक  मंत्रो के जप के समय सामान्यरूप से नहीं कि जाती !

प्रत्येक महाविद्ध्या महाशक्ति या योगिनी कि सिद्धि के लिए विभिन्न प्रकार के आसन,मालाओं,वेशो,जप और साधना के समय तथा गुप्त स्थान का विधान हें !

किसी भी प्रकार की तांत्रिक साधना ऐसे किसी स्थान में करने का बड़ा भारी निषेध हें !

जहां आस-पास लोग देखते हो, कोलाहल हो, या कोई  झांककर भी अनुष्ठान  प्रक्रिया को देख पा सकता हो !

साधक के द्वारा ही जप -

बहुत से लोग किसी भी पंडित को पकड़कर उससे बगलामुखी या श्री विद्द्या  का जप,पाठ,अनुष्ठान या हवन करा तो लेते हें ! किन्तु उसका फल प्राप्त नहीं होता !
पहल तभी प्राप्त होता हें जब मनुष्य उस महाविद्ध्या के अनुकूल दीक्षा लेकर पूरे विधि-विधान के साथ स्वयं जप करें अथवा किसी सिद्ध साधक के द्वारा जप करावें !

Tantric chanting of Mantras are not commonly time !

Each Mhowiddhya elf superpower or the accomplishment of a variety of postures , garlands , Veso , chanting and meditation at the time and place of secret legislation Hey!

Tantric practice of any kind that may prohibit such a tremendous place to be in !

Where around to see people , noise , or a ritual process looked to be able to see it!

By seeker chanting -
Many people Bglamuki or any priest grabbed him by chanting Sri Viddya , text , ritual or fire , take the acronym Hey! But it does not bear fruit !

दिव्य बीजमंत्र अथर्ववेद

यह दिव्य बीजमंत्र अथर्ववेद का अति रहस्यमय व् गोपनीय मंत्र हें ! अथर्ववेद में इसकी बड़ीं महिमा हें ! इसमें भगवान ब्रम्हा,विष्णु,महेश,माँ महालक्ष्मी,माँ काली,माँ सरस्वती,भगवान कुबेर,भगवान इंद्र आदि देवताओं  कि दिव्य शक्तियां विद्धमान हें ! अथर्ववेद का यह मन्त्र वि-शृखंल रूप से जानबूझकर छुपाया गया हें और कई भागों में विभक्त किया गया हें ! इससे यह स्पष्ट होता हे कि यह मन्त्र कितना गोपनीय व् महत्वपूर्ण हें ! यह सभी मंत्रो का मुकुटमणि हें ! 

मन्त्र का श्लोक इस प्रकार हें -कामो योनिः कमला वज्र पनिर्गुहा हसा मात-रिश्र्वा अभ्र इन्द्रः ! पुनर्गुहा सकला मायया च पुरुच्येसा विश्र्व मातादी विद्धों!!  

इस स्तोत्र से अपना हीलिंग पावर बढ़ा सकते हें - क्रमबद्धता फ्रीक्वेंसी नमः शिवाय -The hymn that may increase your Healing Power - Order Frequency Namaha Shivaya -

श्री प्रत्यंगिरा स्तोत्र का ११०० पाठ का अनुष्ठान करने एबम ११०० मन्त्र का जाप करने से गुमा हुआ व्यक्ति वापिस आ जाता है, इसके अनुष्ठान करने से बाधा एवं असाध्य कार्य भी सिद्ध ०६ माह में होते है i शोधकर्ता - शिवांश
एकाहिकं द्याहिकं ज्याहिकं चतुर्थिकम, मासिकं द्वामासिकं त्रमासिकं चतुर्थमासिकं वातिकम पयतिकम श्लेशिमिकम सन्निपातिकम सतत ज्वर षड्ज्वर त्रिदोष भैद्ज्वर गृहनक्षत्र,दोषोंन्हर हरकाली शर शर गौरी धम-धम विद्यम आलो ताले,माल तमाले, गंधे-बंधे पच्च -पच्च विद्या मत्थ-मत्थ नाशय पापं हर-हर दुख्स्वप्न दिघ्न विनाशनी रजनि संन्धे दुन्दुभिनादे माने वेगे शंखनी व जणी गदिनी शूलनी अपमृत्यु विनाशनी विश्वेश्वरी द्रावनी-द्राणी केशि बदइते पशुपति गणिते दुष्ट बदइते पशुपति गणिते दुष्ट दुरन्ते भीम मर्दिन दुंदभि-दमनी शपरिर्की गति मातंगी ॐ आं ह्रीं कुं कौं कुरु-कुरु स्वाहा ! येमांदी विशन्ति प्रत्येक्षम्बा परोक्षे बातानरी नमोम मौम ॐ मर्दय-मर्दय पातय-पातय शोषय-शोषय उच्छादै -उच्छादै ब्रह्मणि माहेश्वरी कौमारि वाराही वैनायकी ऐन्द्री चान्द्री-चंद्री चामुंडे वारूणी वाय विलक्छ रक्ष प्रचंड तीव्रे इन्द्रो पेन्दरी शंखनी जय-विजय शान्ति स्वस्ति पुष्टि धृति विवर्धिनी कम्भाकुशे काम धुंदे सर्व काम वरंप्रदे सर्व भूतेषु माम प्रियं कुरु-कुरु स्वाहा ! आकरिपिनि आवेशिनी ज्वाला मालिनी,रमणि-रामणि, धरणी-धारिनि,तपनी-तापिनी, सदवोंन्मादिनी शोखणि सम्मोद्नी महानीले नीलपताके महागौरी महाश्रिये महामारि आदित्ये रश्मि जानिहवि यमघंटे किल-किल सुरभि चिंतामनि स्त्रोत पन्ने सर्व काम दुधे यथा मनिखितम कुर्यानी तन्मे सिंचन्तु स्वाहा ! ॐ भू: स्वाहा, ॐ भु: स्स्वाहा, ॐ स्व स्वाहा ! ॐ भूर्भुस्स्वस्स्वाहा पतये वागतं पापं ततैव प्रतिगछ्न्तु स्वाहा ! ॐ वने-रणे ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ रं रं रं रं रं रक्ष-रक्ष सर्वोपद्र्वेभ्योम हामे-घैर छाग्नि समव्रतक विधुदर्कम मूर्ति कपिर्दनी दिव्य कनकाम मोरह्वी कचमाला धारिणी शिति कपाल भ्रघाघ्रा जिन परिवृते परमेश्वरि प्रिये मम शत्रुन छिन्छि-छिन्छि, भिथि-भिथि, विद्रावे-विद्रावे, देव पिल पिशाच नागासुर गरुण किन्नर विद्याधर ग्रह गन्धर्व यक्ष राक्षस प्रेत गुह्यकं लोकपाला नवग्रह न-लो पालो स्तम्भय-स्तम्भय मारय-मारय चे मम धारकस्य शलवस्ता न निकीलिते-निकीलिते येचे मम विधान कर्म कुर्वन्ति कार्यन्ति वातेखाम विद्याम स्तभ्य- स्तभ्य स्थानं किलय-किलय, देशं घातय-घातय विश्वमूर्ते महातेजसे !

(1) ॐ यःयः ॐ ठ: ठ: मम शत्रुन स्तम्भय-स्तम्भय विश्वमूर्ते महातेजसे ! (2) ॐ यःयः ॐ ठ: ठ: मम शत्रुणाम श्रेय स्तम्भय-स्तम्भय विश्वमूर्ते महातेजसे ! (3) ॐ यःयः ॐ ठ: ठ: मम शत्रुणाम नेत्रे स्तम्भय-स्तम्भय विश्वमूर्ते महातेजसे !(4) ॐ यःयः ॐ ठ: ठ: मम शत्रुणाम जिह्वा स्तम्भय-स्तम्भय विश्वमूर्ते महातेजसे !(5) ॐ यःयः ठ: ठ: मम शत्रुणाम हस्तो स्तम्भय-स्तम्भय विश्वमूर्ते ! (6) ॐ यःयः ॐ ठ: ठ: मम शत्रुणाम हृदयं स्तम्भय-स्तम्भय विश्वमूर्ते ! (7) ॐ यःयः ॐ ठ: ठ: मम शत्रुणाम पादै (पेर) स्तम्भय-स्तम्भय मिष्ठान स्तम्भय-स्तम्भय विश्वमूर्ते ! (8) ॐ यःयः ॐ ठ: ठ: मम शत्रुनाम कुटुम-वाक्यानि स्तम्भय-स्तम्भय विश्वमूर्ते ! (9) ॐ यःयः ॐ ठ: ठ: मम शत्रुनाम स्थानं कीलय-कीलय विश्वमूर्ते ! (10) ॐ यःयः ॐ ठ: ठ: मम शत्रुनाम ग्रामं कीलय-कीलय विश्वमूर्ते (11) ॐ यःयः ॐ ठ: ठ: मम शत्रुनाम mandalam कीलय-कीलय विश्वमूर्ते ! (12) ॐ यःयः ॐ ठ: ठ: मम शत्रुनाम देशम कीलय-कीलय विश्वमूर्ते ! सर्वसिद्ध महाभागे मम धारकस्य सपरिवारस्य सर्वतो रक्षणं कुरु-कुरु स्वाहा ! (1) ॐ ॐ ॐ ॐ (2) ठः ठः ठः (3) हुं हुं हुं (4) यं यं यं यं यं (5) रं रं रं रं रं (6) लं लं लं लं लं (7) बं बं बं बं बं (8) ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ॐप्रत्यंगिरे महाविद्हम मम धारकस्य सर्वतो रक्षणं कुरु कुरु स्वाहा ! ॐनमो भगवती दुष्ट चान्द्र्लिनी त्रिशूल बज्रांग कुश शक्ति धारणी, रुधिर मांस भक्छनी, कपाल खट्टागाशि धारणी, मम धारकस्य सलुन हन-हन दह-दह धम-धम मथ-मथ सर्व दुष्ठानम ग्रसि –ग्रसि अहूम फट स्वाहा !!

दृष्टा करालिनी मम कृते मंत्र तंत्र यन्त्र विषपूर्ण शस्त्राभी चार सर्वो प्रद्वादिकम येन कृतं कारितं कुरुते कार्यन्ति करिष्यन्तिकारिश्यन्ति वातानी सर्वौउ अऊम हन-हन,अऊम मर्दय-मर्दय, अऊम घास्य, अऊम घातय, अऊम नाशय-नाशय,अऊम मुछाद्य-मुछाद्य अऊम विध्वंषे-विध्वंषे,अऊम विदारे-विदारे,अऊम कृते-कृते,अऊम प्रत्यन्गिरे त्वं मान्धारकम सपरिवारं रक्ष-रक्ष स्वाहा ! (1) ॐ ऐं हीं श्रीं क्लीम स्फेंग- स्फोंग ॐ है है है फट स्वाहा (2) ॐऐं हीं श्रीं क्लीम स्फेंग- स्फोंग ब्रहमाणी मम शिरो रक्ष-रक्ष स्वाहा (3) ॐऐं हीं श्रीं क्लीम स्फेंग- स्फोंग माहेश्वरी मम नेत्रे रक्ष-रक्ष स्वाहा (4) ॐ ऐं हीं श्रीं क्लीम स्फेंग- स्फोंग कोमारी मम वक्रम रक्ष-रक्ष स्वाहा (5) ॐऐं हीं श्रीं क्लीम स्फेंग- स्फोंग वैष्णवी मम कंठं रक्ष-रक्ष स्वाहा (6) ॐऐं हीं श्रीं क्लीम स्फेंग- स्फोंग वाराही मम हिर्देयम रक्ष-रक्ष स्वाहा (7) ॐऐं हीं श्रीं क्लीम स्फेंग- स्फोंग इन्द्राणी मम नाभिम रक्ष-रक्ष स्वाहा (8) ॐऐं हीं श्रीं क्लीम स्फेंग- स्फोंग चामुंडे मम गुद्यम रक्ष-रक्ष स्वाहा (9) ॐ ऐं हीं श्रीं क्लीम स्फेंग- स्फोंग वसुंधरम मम पादू रक्ष-रक्ष स्वाहा !स्तम्भनी मोदनी चैव क्षोभ-णी द्राव-णी तथा जिम्भि-णी भार्मरी रोद्री तथा सहारणी तिचा ! शक्तिया कर्म योगेन शत्रु पक्छेनं नियोजितः धारिता साध केंद्रे-न सर्वं शत्रु विनासिनी !!!

(1) ऊं स्तम्भनी स्फेंग-स्फेंग मम सत्रुन स्थम्भय-स्थम्भय स्वाहा ! (2) ऊं मोहिनी स्फेंग-स्फेंग मम सत्रुन मोहिनी-मोहिनी स्वाहा (3) ऊं छोभ्नी स्फेंग-स्फेंग मम सत्रुन छोभेय-छोभेय स्वाहा (4) ऊं द्रावनी स्फेंग-स्फेंग मम सत्रुन द्रावय-द्रावय स्वाहा (5) ऊं जिम्भ्नी स्फेंग-स्फेंग मम सत्रुन जम्भय -जम्भय स्वाहा (6) ऊं भ्रामरी स्फेंग-स्फेंग मम सत्रुन भ्रामय-भ्रामय स्वाहा (7) ऊं रोद्री स्फेंग-स्फेंग मम सत्रुन संतायय-संतायय स्वाहा (8) ऊं सहारणी स्फेंग-स्फेंग मम सत्रुन संहारय-संहारय स्वाहा !! अऊम हूंम हूं हूं हूं हूं प्रेत्यंगिरी विकच द्रष्टय ह्रीं द्रष्टय ह्रीं कालि-कालि स्फेंग-स्फेंग फेत्कारी मम शत्रुण छेद्य-छेद्य खाद्य -खाद्य सर्वदुष्टानी मारय-मारय खड्गे छिन्न-छिन्न भिन्धि-भिन्धि किल-किल पीव-पीव रुधिर स्फेंग-स्फेंग किल-किल कालि-कालि महाकाली महाकाली अऊम ह्रां हुं फट स्वाहा जयमान धारयत विधान त्रिसंध्यं चापि यह पठेत सोपि दुशवान तपो भुत्वा हन्यान शत्रुन न संसय यायित्व मानधार्येत विधान महाभय विपत्तिशु महाभयेषु घोरेषु न भय विधते कुचित सर्वान का मान वायनोती मृत्यु लोके न संसय: पु*यो देर्वेया दिक्षु विदिक्षु विजयं चक फटकारें-ण समुत्पन्ने रक्षयेत साध कातमम रक्षयेत साध कोतमम ॐ जय २श्री रूद्रयामले गोरी तन्त्रे शिव पार्वती संवादे कराल बदने प्रत्यंगिरा स्तोत्रम मम कामना सिध्द्ये श्री जगदम्बा अर्पणं मस्तु ! ॐ ह्रीं नमः कृष्ण वाससे सत शहस्त्र हिन्सिनी शहस्त्रबद्ने महाबले अपराजिते प्रित्यंगिरे पर सेन्य पर कर्मविध्वंसिनी पर मंत्रोत सादिनी सर्व भूत दमनी सर्व देवान वधं-वधं सर्व विद्या-दयाम छिंद-छिंद छोभय-छोभय पर यंत्रानी स्फोटय-स्फोटय सर्व श्रखंला स्त्रो-टय स्त्रो-टय ज्वल-ज्वाला जिह्वा कराल बदने प्रित्यंगिरे ह्रीं नमः ॐ ह्रीं जापं कल्पम पत्तिनो-रय कुरुराम कृत्याम वधुमिव ताम ब्राम्हनाये निर्धमः प्रत्य-करतार म्रक्षन्तु ह्रीं नमः ॐ नमः ह्रीं नमः ॐ !

Friday, December 6, 2013

श्री प्रत्यंगिरा स्तोत्र का ११०० पाठ का अनुष्ठान करने एबम ११०० मन्त्र का जाप करने से गुमा हुआ व्यक्ति वापिस आ जाता है, इसके अनुष्ठान करने से बाधा एवं असाध्य कार्य भी सिद्ध ०६ माह में होते है i शोधकर्ता - शिवांश

एकाहिकं द्याहिकं ज्याहिकं चतुर्थिकम, मासिकं द्वामासिकं त्रमासिकं चतुर्थमासिकं वातिकम पयतिकम श्लेशिमिकम सन्निपातिकम सतत ज्वर षड्ज्वर त्रिदोष भैद्ज्वर गृहनक्षत्र,दोषोंन्हर हरकाली शर शर गौरी धम-धम विद्यम आलो ताले,माल तमाले, गंधे-बंधे पच्च -पच्च विद्या मत्थ-मत्थ नाशय पापं हर-हर दुख्स्वप्न दिघ्न विनाशनी रजनि संन्धे दुन्दुभिनादे माने वेगे शंखनी व जणी गदिनी शूलनी अपमृत्यु विनाशनी विश्वेश्वरी द्रावनी-द्राणी केशि बदइते पशुपति गणिते दुष्ट बदइते पशुपति गणिते दुष्ट दुरन्ते भीम मर्दिन दुंदभि-दमनी शपरिर्की गति मातंगी ॐ आं ह्रीं कुं कौं कुरु-कुरु स्वाहा ! येमांदी विशन्ति प्रत्येक्षम्बा परोक्षे बातानरी नमोम मौम ॐ मर्दय-मर्दय पातय-पातय शोषय-शोषय उच्छादै -उच्छादै ब्रह्मणि माहेश्वरी कौमारि वाराही वैनायकी ऐन्द्री चान्द्री-चंद्री चामुंडे वारूणी वाय विलक्छ रक्ष प्रचंड तीव्रे इन्द्रो पेन्दरी शंखनी जय-विजय शान्ति स्वस्ति पुष्टि धृति विवर्धिनी कम्भाकुशे काम धुंदे सर्व काम वरंप्रदे सर्व भूतेषु माम प्रियं कुरु-कुरु स्वाहा ! आकरिपिनि आवेशिनी ज्वाला मालिनी,रमणि-रामणि, धरणी-धारिनि,तपनी-तापिनी, सदवोंन्मादिनी शोखणि सम्मोद्नी महानीले नीलपताके महागौरी महाश्रिये महामारि आदित्ये रश्मि जानिहवि यमघंटे किल-किल सुरभि चिंतामनि स्त्रोत पन्ने सर्व काम दुधे यथा मनिखितम कुर्यानी तन्मे सिंचन्तु स्वाहा ! ॐ भू: स्वाहा, ॐ भु: स्स्वाहा, ॐ स्व स्वाहा ! ॐ भूर्भुस्स्वस्स्वाहा पतये वागतं पापं ततैव प्रतिगछ्न्तु स्वाहा ! ॐ वने-रणे ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ रं रं रं रं रं रक्ष-रक्ष सर्वोपद्र्वेभ्योम हामे-घैर छाग्नि समव्रतक विधुदर्कम मूर्ति कपिर्दनी दिव्य कनकाम मोरह्वी कचमाला धारिणी शिति कपाल भ्रघाघ्रा जिन परिवृते परमेश्वरि प्रिये मम शत्रुन छिन्छि-छिन्छि, भिथि-भिथि, विद्रावे-विद्रावे, देव पिल पिशाच नागासुर गरुण किन्नर विद्याधर ग्रह गन्धर्व यक्ष राक्षस प्रेत गुह्यकं लोकपाला नवग्रह न-लो पालो स्तम्भय-स्तम्भय मारय-मारय चे मम धारकस्य शलवस्ता न निकीलिते-निकीलिते येचे मम विधान कर्म कुर्वन्ति कार्यन्ति वातेखाम विद्याम स्तभ्य- स्तभ्य स्थानं किलय-किलय, देशं घातय-घातय विश्वमूर्ते महातेजसे !

(1) ॐ यःयः ॐ ठ: ठ: मम शत्रुन स्तम्भय-स्तम्भय विश्वमूर्ते महातेजसे ! (2) ॐ यःयः ॐ ठ: ठ: मम शत्रुणाम श्रेय स्तम्भय-स्तम्भय विश्वमूर्ते महातेजसे ! (3) ॐ यःयः ॐ ठ: ठ: मम शत्रुणाम नेत्रे स्तम्भय-स्तम्भय विश्वमूर्ते महातेजसे !(4) ॐ यःयः ॐ ठ: ठ: मम शत्रुणाम जिह्वा स्तम्भय-स्तम्भय विश्वमूर्ते महातेजसे !(5) ॐ यःयः ठ: ठ: मम शत्रुणाम हस्तो स्तम्भय-स्तम्भय विश्वमूर्ते ! (6) ॐ यःयः ॐ ठ: ठ: मम शत्रुणाम हृदयं स्तम्भय-स्तम्भय विश्वमूर्ते ! (7) ॐ यःयः ॐ ठ: ठ: मम शत्रुणाम पादै (पेर) स्तम्भय-स्तम्भय मिष्ठान स्तम्भय-स्तम्भय विश्वमूर्ते ! (8) ॐ यःयः ॐ ठ: ठ: मम शत्रुनाम कुटुम-वाक्यानि स्तम्भय-स्तम्भय विश्वमूर्ते ! (9) ॐ यःयः ॐ ठ: ठ: मम शत्रुनाम स्थानं कीलय-कीलय विश्वमूर्ते ! (10) ॐ यःयः ॐ ठ: ठ: मम शत्रुनाम ग्रामं कीलय-कीलय विश्वमूर्ते (11) ॐ यःयः ॐ ठ: ठ: मम शत्रुनाम mandalam कीलय-कीलय विश्वमूर्ते ! (12) ॐ यःयः ॐ ठ: ठ: मम शत्रुनाम देशम कीलय-कीलय विश्वमूर्ते ! सर्वसिद्ध महाभागे मम धारकस्य सपरिवारस्य सर्वतो रक्षणं कुरु-कुरु स्वाहा ! (1) ॐ ॐ ॐ ॐ (2) ठः ठः ठः (3) हुं हुं हुं (4) यं यं यं यं यं (5) रं रं रं रं रं (6) लं लं लं लं लं (7) बं बं बं बं बं (8) ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ॐप्रत्यंगिरे महाविद्हम मम धारकस्य सर्वतो रक्षणं कुरु कुरु स्वाहा ! ॐनमो भगवती दुष्ट चान्द्र्लिनी त्रिशूल बज्रांग कुश शक्ति धारणी, रुधिर मांस भक्छनी, कपाल खट्टागाशि धारणी, मम धारकस्य सलुन हन-हन दह-दह धम-धम मथ-मथ सर्व दुष्ठानम ग्रसि –ग्रसि अहूम फट स्वाहा !!

दृष्टा करालिनी मम कृते मंत्र तंत्र यन्त्र विषपूर्ण शस्त्राभी चार सर्वो प्रद्वादिकम येन कृतं कारितं कुरुते कार्यन्ति करिष्यन्तिकारिश्यन्ति वातानी सर्वौउ अऊम हन-हन,अऊम मर्दय-मर्दय, अऊम घास्य, अऊम घातय, अऊम नाशय-नाशय,अऊम मुछाद्य-मुछाद्य अऊम विध्वंषे-विध्वंषे,अऊम विदारे-विदारे,अऊम कृते-कृते,अऊम प्रत्यन्गिरे त्वं मान्धारकम सपरिवारं रक्ष-रक्ष स्वाहा ! (1) ॐ ऐं हीं श्रीं क्लीम स्फेंग- स्फोंग ॐ है है है फट स्वाहा (2) ॐऐं हीं श्रीं क्लीम स्फेंग- स्फोंग ब्रहमाणी मम शिरो रक्ष-रक्ष स्वाहा (3) ॐऐं हीं श्रीं क्लीम स्फेंग- स्फोंग माहेश्वरी मम नेत्रे रक्ष-रक्ष स्वाहा (4) ॐ ऐं हीं श्रीं क्लीम स्फेंग- स्फोंग कोमारी मम वक्रम रक्ष-रक्ष स्वाहा (5) ॐऐं हीं श्रीं क्लीम स्फेंग- स्फोंग वैष्णवी मम कंठं रक्ष-रक्ष स्वाहा (6) ॐऐं हीं श्रीं क्लीम स्फेंग- स्फोंग वाराही मम हिर्देयम रक्ष-रक्ष स्वाहा (7) ॐऐं हीं श्रीं क्लीम स्फेंग- स्फोंग इन्द्राणी मम नाभिम रक्ष-रक्ष स्वाहा (8) ॐऐं हीं श्रीं क्लीम स्फेंग- स्फोंग चामुंडे मम गुद्यम रक्ष-रक्ष स्वाहा (9) ॐ ऐं हीं श्रीं क्लीम स्फेंग- स्फोंग वसुंधरम मम पादू रक्ष-रक्ष स्वाहा !स्तम्भनी मोदनी चैव क्षोभ-णी द्राव-णी तथा जिम्भि-णी भार्मरी रोद्री तथा सहारणी तिचा ! शक्तिया कर्म योगेन शत्रु पक्छेनं नियोजितः धारिता साध केंद्रे-न सर्वं शत्रु विनासिनी !!!

(1) ऊं स्तम्भनी स्फेंग-स्फेंग मम सत्रुन स्थम्भय-स्थम्भय स्वाहा ! (2) ऊं मोहिनी स्फेंग-स्फेंग मम सत्रुन मोहिनी-मोहिनी स्वाहा (3) ऊं छोभ्नी स्फेंग-स्फेंग मम सत्रुन छोभेय-छोभेय स्वाहा (4) ऊं द्रावनी स्फेंग-स्फेंग मम सत्रुन द्रावय-द्रावय स्वाहा (5) ऊं जिम्भ्नी स्फेंग-स्फेंग मम सत्रुन जम्भय -जम्भय स्वाहा (6) ऊं भ्रामरी स्फेंग-स्फेंग मम सत्रुन भ्रामय-भ्रामय स्वाहा (7) ऊं रोद्री स्फेंग-स्फेंग मम सत्रुन संतायय-संतायय स्वाहा (8) ऊं सहारणी स्फेंग-स्फेंग मम सत्रुन संहारय-संहारय स्वाहा !! अऊम हूंम हूं हूं हूं हूं प्रेत्यंगिरी विकच द्रष्टय ह्रीं द्रष्टय ह्रीं कालि-कालि स्फेंग-स्फेंग फेत्कारी मम शत्रुण छेद्य-छेद्य खाद्य -खाद्य सर्वदुष्टानी मारय-मारय खड्गे छिन्न-छिन्न भिन्धि-भिन्धि किल-किल पीव-पीव रुधिर स्फेंग-स्फेंग किल-किल कालि-कालि महाकाली महाकाली अऊम ह्रां हुं फट स्वाहा जयमान धारयत विधान त्रिसंध्यं चापि यह पठेत सोपि दुशवान तपो भुत्वा हन्यान शत्रुन न संसय यायित्व मानधार्येत विधान महाभय विपत्तिशु महाभयेषु घोरेषु न भय विधते कुचित सर्वान का मान वायनोती मृत्यु लोके न संसय: पु*यो देर्वेया दिक्षु विदिक्षु विजयं चक फटकारें-ण समुत्पन्ने रक्षयेत साध कातमम रक्षयेत साध कोतमम ॐ जय २श्री रूद्रयामले गोरी तन्त्रे शिव पार्वती संवादे कराल बदने प्रत्यंगिरा स्तोत्रम मम कामना सिध्द्ये श्री जगदम्बा अर्पणं मस्तु ! ॐ ह्रीं नमः कृष्ण वाससे सत शहस्त्र हिन्सिनी शहस्त्रबद्ने महाबले अपराजिते प्रित्यंगिरे पर सेन्य पर कर्मविध्वंसिनी पर मंत्रोत सादिनी सर्व भूत दमनी सर्व देवान वधं-वधं सर्व विद्या-दयाम छिंद-छिंद छोभय-छोभय पर यंत्रानी स्फोटय-स्फोटय सर्व श्रखंला स्त्रो-टय स्त्रो-टय ज्वल-ज्वाला जिह्वा कराल बदने प्रित्यंगिरे ह्रीं नमः ॐ ह्रीं जापं कल्पम पत्तिनो-रय कुरुराम कृत्याम वधुमिव ताम ब्राम्हनाये निर्धमः प्रत्य-करतार म्रक्षन्तु ह्रीं नमः ॐ नमः ह्रीं नमः ॐ !